Posts

सिस्टम मरा हुआ जानवर है

Image
सवाल सिर्फ आने-जाने, रुकने-ठहरने, घूमने-फिरने और खाने-पीने में होने वाले व्यय का ही नहीं है। सिर्फ यही मसला हो तो बर्दाश्त भी किया जा सकता है।  परीक्षा देने में जितना खर्च नहीं होता है, उससे कई गुना ज्यादा पैसा परीक्षा की तैयारी करने में खर्च होता है। अपने आसपास पता कीजिए कि जिन्होंने HPSC Assistant Professor की तैयारी करवाई है, की है, उन्होंने कितनी फीस ली है, दी है।  मनमाने तरीके से लोगों ने प्रतिभागियों से इसकी फीस वसूली है। मिनिमम 30 हजार रुपए खर्च हुए होंगे। मैंने ही 10-15 हजार में इसकी तैयारी करवाई थी। यह सबसे कम फीस थी।  लेकिन बच्चों की मेहनत, खर्च पर तब पानी फिर जाता है जब उसके साथ परीक्षा में फ्रॉड होता है। सिलेबस कुछ और हो और सवाल कुछ और पूछा जाता है। सिलेबस से सवाल भी पूछा जाता है तो बिल्कुल स्तरहीन सवाल होता है। पेपर देखकर ही लग जाता है कि पेपर बनाने वाले के मन में चोर बैठा है।  हमारे प्रोफेसर्स बताते रहे हैं कि आयोग का पेपर देना चाहिए। वहाँ पढ़ने-लिखने वाले विद्यार्थियों के लिए सफलता की पूरी संभावना रहती है। क्योंकि आयोग की परीक्षा अच्छी और नि...

'अस्मिता' में अस्मिता की खोज

Image
वर्सोवा विलेज से आराम नगर की दूरी मुश्किल से एक या डेढ़ किलोमीटर होगी। डिपेंड करता है कि आप विलेज के कितना अंदर और कितना बाहर रहते हैं। फिर भी मान लीजिए कि बारह-तेरह सौ मीटर की दूरी होगी। D Mart से ही आराम नगर शुरू हो जाता है। D मार्ट से थोड़ा आगे बढ़ने पर बॉलीवुड के सबसे बड़े कास्टिंग डायरेक्टर मुकेश छावड़ा का बड़ा-सा ऑफिस है। उन्होंने दो-दो ऑफिस बना रखा है। कास्टिंग के लिए अलग और राइटिंग टीम के लिए अलग। उनके ऑफिस से मात्र सौ मीटर की दूरी पर अस्मिता थिएटर का ऑफिस है। विद्यार्थी हमेशा उसमें कुछ न कुछ अभ्यास करते रहते हैं। अंदर रिहर्सल चलता है, बाहर ऑफिस में बैठकर दो-तीन लोग कुछ न कुछ पढ़ते रहते हैं। उस ऑफिस में मंडी हाउस के श्रीराम थिएटर में हुए कई कार्यक्रम के पोस्टर लगे हुए हैं। स्वदेश दीपक के 'कोर्ट मार्शल' और असगर वजाहत के 'जिन लाहौर नहीं देख्या' के पोस्टर ज्यादा है। अजय देवगन की 'भोला' फिल्म में खलनायक की भूमिका निभाने वाले दीपक डोबरियाल की दो-तीन पोस्टर है। मैंने किसी से पूछा नहीं लेकिन अनुमान लगाया कि दीपक डोबरियाल अस्मिता थिएटर से जुड़े रहे होंगे। लग...

बॉलीवुड: क्रिएटिव लोगों का कब्रिस्तान

Image
मुझे मुंबई आए हुआ आज एक महीना एक दिन पूर्ण हुआ। दस दिन की यात्रा सोचकर आया था लेकिन तीस दिन कैसे बीता मुझे सब पता चला। क्योंकि यह न मेरी केवल फिल्मी यात्रा है बल्कि मैंने इसे साहित्यिक यात्रा भी बनाया है। यही वजह है कि मैं हर उस जगह घूमने के लिए निकल गया जहाँ जाने का मेरा मन हुआ। एक रात 9 बजे Madh Island पहुँच गया था। ऑटो वाले को 100 रुपया दिया और कहा कि भाई इसका एक चक्कर लगा दो। पंकज त्रिपाठी के बैंग्लो भी पहुँच गया था। मतलब जबर्दस्ती कहीं भी जा रहा हूँ। अच्छी बात यह है कि सब अच्छे से पेश आ रहे हैं। बात कर लेते हैं। पढ़ा-लिखा होने का थोड़ा-बहुत लाभ मुझे मिल रहा है। बहुत जल्दी ही यात्रा वृत्तांत और संस्मरण के तौर पर पूरी कथा आपको पढ़ने को मिलेगी। मैं इसके लिए आपको पूरा भरोसा दिया सकता हूँ। प्रतीक्षा जरूर कीजिएगा। मैंने अपनी इस यात्रा में कई अध्याय जोड़े हैं। उन्हीं अध्यायों में से एक अध्याय यह भी है। अभी मेरी शॉर्ट फिल्म पर यहाँ के स्ट्रगलर फिल्म बना रहे हैं तो एक अध्याय मेरी वह फिल्म भी बनने वाली है। उस फिल्म में जो लड़का काम कर रहा है वह मनोज वाजपेयी के साथ स्क्रीन शेयर कर चुक...

स्पर्श रेखाएं: रमेश ठाकुर

Image
पाँच ज्ञानेंद्रियों में से खराब हो गई थीं दो इंद्रियां नहीं खराब हुआ था कर्ण गली में घुसते ही पैरों की आहट से पहचान लेती थी माँ कि उसके कलेजे का टुकड़ा दिनभर खटने-भटकने के बाद उड़ते हुए पक्षियों की तरह खेतों से लौट रहे पशुओं की तरह हनहनाता हुआ घर लौट रहा है। नहीं खराब हुई थी नासिका घर में घुसते ही  देह के गंध से वह पहचान लेती थी बेटे को कहती थी कि  वह मेरी देह की गंध को तब से जानती है जब अपनी जंघा पर  कभी चित तो कभी पट लिटाकर लहसून डुबोये  गर्म सरसो के तेल से  रोएं को रगड़-रगड़कर  रुला देती थी छाती पीठ लाल कर देती थी नाक दबाकर  पोंटा बाहर निकालकर वही सरसो का सुसुम तेल कान और नाक में डाल देती थी दोनों हाथ पकड़कर  दाएं को बाएं बाएं को दाएं इतनी जोर से घुमाती थी कि छर्र से पेशाब छूट जाता था और इसकी सजा  यह मिलती थी कि उस कर्मेन्द्री को उघाड़कर  उसमें भी सुसुम तेल डाल देती थी बाँया पैर दाँया हाथ दाँया पैर बाँया हाथ सबको एक साथ पेट पर  इकट्ठा कर मुट्ठी से पकड़ उठाकर बैठा देती थी। नहीं खराब हुई थी उसकी त्वचा हाथ पकड़ते समझ जाती थी कि ...

भूषण और बिहारी: रमेश ठाकुर

Image
भूषण और बिहारी दोनों दरबारी कवि थे। दरबार चार तरह के थे- 1. हिन्दू दरबार 2. मुस्लिम दरबार 3. मुस्लिम समर्थक हिन्दू दरबार 4. हिन्दू समर्थक मुस्लिम दरबार पहले दरबार में स्वराज की भावना प्रबल थी। दूसरे में शासन में बने रहने की। शेष दोनों में चापलूसी करके, राजाओं के आदेश पर सभी धर्मों के लोगों पर अत्याचार करके बड़ाई पाने की भावना थी। उनका अपना कोई स्वतंत्र वजूद नहीं था। जो आदेश मिलता था, करते थे। मारते थे, मरते थे। पहले और दूसरे दरबार के कवियों ने अपने-अपने आश्रयदाता की वीरता की खूब प्रशंसा की है। उनकी कविताओं में ओज प्रबल है, शेष सब बातें पीछे हैं। बाकी के दोनों दरबार के राजाओं की मनःस्थिति मॉर्चरी में काम करने वाले उस कसाई की-सी होती थी जो न चाहते हुए भी चीड़फाड़ करता है। ऐसा करने के लिए वह शराब की मदद लेता है। ये राजा श्रृंगार की मदद लेते थे। भोग-विलास में मन उलझाए रहते थे ताकि अपनी दीनता-हीनता को बर्दाश्त कर सके। इसलिए इनके दरबारी कवियों ने छिछोरेपन की सारी हदें पार कर दीं। गुलाम को आराम चाहिए, सुविधाएं चाहिए। इन्हें यही सब मिल रहा था। अपने इस निकम्मेपन, बुजदिली को उसने श्रृंग...

पद्मावत की कथा

Image
‘पद्मावत ’ एक प्रेमाख्यानक महाकाव्य है. इसमें पद्मावत, रत्नसेन और नागमती की मार्मिक प्रेम कहानी वर्णित है. कहानी का पूर्वार्द्ध कल्पना प्रसूत है तो उत्तरार्द्ध ऐतिहासिक और यथार्थ. इसकी सम्पूर्ण कथा इस प्रकार है- सिंहलद्वीप के राजा गन्धर्वसेन और रानी चम्पावती के यहाँ पद्मावत का जन्म हुआ. पद्मावत जब बड़ी होने लगी तब उसके विवाह के प्रस्ताव आने लगे. गन्धर्वसेन नकारात्मक उत्तर देकर सबको लौटा देते हैं. बारह वर्ष की अल्पायु में ही पद्मावत वयस्क समझी जाने लगी. वह सात खण्डों वाले धवलगृह में अकेली रहने लगी. बोलने-बतियाने , खेलने-कूदने के लिए सखियाँ मिलीं. ज्ञान चर्चा के लिए गुणी और पण्डित स्वभाव वाला तोता हीरामन मिला. एक दिन उसने हीरामन से अपनी काम-विकलता और विवाह के प्रति पिता की उदासीनता का कारण पूछा. हीरामन ने योग्य वर ढूंढने के लिए पद्मावत से आज्ञा माँगा. लेकिन किसी दुर्जन ने इसकी जानकारी राजा तक पहुँचा दी. राजा ने तोते को मारने का आदेश दिया. पद्मावत ने किसी तरह उसे बचा लिया. हीरामन समझ गया कि अब पकड़ा गया तो जिंदा बचना मुश्किल है. वह डर गया था. एक दिन जब पद्मावत सखियों के साथ सरोवर में स्...