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Showing posts from February, 2025

स्पर्श रेखाएं: रमेश ठाकुर

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पाँच ज्ञानेंद्रियों में से खराब हो गई थीं दो इंद्रियां नहीं खराब हुआ था कर्ण गली में घुसते ही पैरों की आहट से पहचान लेती थी माँ कि उसके कलेजे का टुकड़ा दिनभर खटने-भटकने के बाद उड़ते हुए पक्षियों की तरह खेतों से लौट रहे पशुओं की तरह हनहनाता हुआ घर लौट रहा है। नहीं खराब हुई थी नासिका घर में घुसते ही  देह के गंध से वह पहचान लेती थी बेटे को कहती थी कि  वह मेरी देह की गंध को तब से जानती है जब अपनी जंघा पर  कभी चित तो कभी पट लिटाकर लहसून डुबोये  गर्म सरसो के तेल से  रोएं को रगड़-रगड़कर  रुला देती थी छाती पीठ लाल कर देती थी नाक दबाकर  पोंटा बाहर निकालकर वही सरसो का सुसुम तेल कान और नाक में डाल देती थी दोनों हाथ पकड़कर  दाएं को बाएं बाएं को दाएं इतनी जोर से घुमाती थी कि छर्र से पेशाब छूट जाता था और इसकी सजा  यह मिलती थी कि उस कर्मेन्द्री को उघाड़कर  उसमें भी सुसुम तेल डाल देती थी बाँया पैर दाँया हाथ दाँया पैर बाँया हाथ सबको एक साथ पेट पर  इकट्ठा कर मुट्ठी से पकड़ उठाकर बैठा देती थी। नहीं खराब हुई थी उसकी त्वचा हाथ पकड़ते समझ जाती थी कि ...

भूषण और बिहारी: रमेश ठाकुर

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भूषण और बिहारी दोनों दरबारी कवि थे। दरबार चार तरह के थे- 1. हिन्दू दरबार 2. मुस्लिम दरबार 3. मुस्लिम समर्थक हिन्दू दरबार 4. हिन्दू समर्थक मुस्लिम दरबार पहले दरबार में स्वराज की भावना प्रबल थी। दूसरे में शासन में बने रहने की। शेष दोनों में चापलूसी करके, राजाओं के आदेश पर सभी धर्मों के लोगों पर अत्याचार करके बड़ाई पाने की भावना थी। उनका अपना कोई स्वतंत्र वजूद नहीं था। जो आदेश मिलता था, करते थे। मारते थे, मरते थे। पहले और दूसरे दरबार के कवियों ने अपने-अपने आश्रयदाता की वीरता की खूब प्रशंसा की है। उनकी कविताओं में ओज प्रबल है, शेष सब बातें पीछे हैं। बाकी के दोनों दरबार के राजाओं की मनःस्थिति मॉर्चरी में काम करने वाले उस कसाई की-सी होती थी जो न चाहते हुए भी चीड़फाड़ करता है। ऐसा करने के लिए वह शराब की मदद लेता है। ये राजा श्रृंगार की मदद लेते थे। भोग-विलास में मन उलझाए रहते थे ताकि अपनी दीनता-हीनता को बर्दाश्त कर सके। इसलिए इनके दरबारी कवियों ने छिछोरेपन की सारी हदें पार कर दीं। गुलाम को आराम चाहिए, सुविधाएं चाहिए। इन्हें यही सब मिल रहा था। अपने इस निकम्मेपन, बुजदिली को उसने श्रृंग...