'प्रवेश परीक्षा ही न्यायोचित है'

 

'प्रवेश परीक्षा ही न्यायोचित है'  

दिल्ली विश्वविद्यालय नॉर्थ कैंपस के अध्यापक ने विवादास्पद बयान दिया कि केरल बोर्ड जानबूझकर दिल्ली विश्वविद्यालय में वामपंथी विचारधारा थोपने के लिए अपने छात्रों को सौ प्रतिशत अंक देता है।’ मुझे बाबा नागार्जुन की एक कविता सच न बोलना की कुछ पंक्तियाँ स्मरण हो आईं जिसमें वे कहते हैं- रोजी रोटी हक की बातें जो भी मुंह पर लाएगा, कोई भी हो, निश्चय ही वह कम्युनिस्ट कहलाएगा। बातें तो पुरानी हैं, पर नई लगती हैं। क्या अपने अधिकारों की बात करना कम्युनिस्ट होना हैव्यवस्था से सवाल करना, रोजी-रोटी के लिए संघर्ष करना कम्युनिस्ट होना है? सवाल नहीं होगा तो संवाद कैसे होगा? संवाद नहीं होगा तो लोकतंत्र कैसे बचेगा? भारत एक लोकतांत्रिक देश है। प्रत्येक मनुष्य तथा सभी धर्मानुयायियों को अपनी बात कहने-सुनने का हक भारत का संविधान उसे देता है। क्या वर्तमान सामाजिक और राजनैतिक व्यवस्था आम नागरिकों को यह छूट देने के पक्ष में नहीं हैइस बयान ने विश्वविद्यालय की वैचारिक बहस को तीव्र कर दिया है। लेकिन उपरोक्त बयान में एक चिंता की ओर संकेत है, जिसका जिक्र करना जरूरी है।

          इन दिनों जूलॉजी विषय के दाखिला प्रक्रिया से जुड़ने का मुझे मौका मिला। मैंने देखा कि जितने भी आवेदन आए थेउसमें नब्बे फीसदी विद्यार्थी दक्षिण भारत के थे। कश्मीरी माइग्रेंट दूसरे नंबर था। राजस्थान बोर्ड के छात्र तीसरे नंबर पर। उसके बाद एकाध छात्र हरियाणा, मध्य प्रदेश का दिखा। बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश का एक भी आवेदन दिखाई नहीं दिया। मैंने अपने एक अध्यापक से मजाकिए लहजे में कहा- दिल्ली विश्वविद्यालय को अब केरला बोर्ड कर देना चाहिए। उनका जवाब था- क्यों कर देना चाहिए? तुमने एडमिशन की क्राइटेरिया प्रसेंटेज को क्यों बनाया है? जब प्रसेंटेज के आधार पर ही दाखिला देना है तो दो। चाहे सब केरल के ही विद्यार्थी क्यों न हो। तुम्हें इससे क्या मतलब?’ मुझे उनकी बात ठीक लगी। जब दाखिला का आधार ही बारहवीं का प्राप्तांक है तो विवाद क्योंविचारधारा के आधार पर दाखिला तो दिया नहीं जा रहा है जो इस तरह का आरोप लगाया जाए।

          बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश आदि राज्यों के विद्यार्थी पिछड़ रहे हैं तो यह वहाँ की शिक्षा व्यवस्था की खामियाँ हैं। नीति आयोग द्वारा 30 सितंबर 2019 को जो स्कूल शिक्षा गुणवत्ता सूचकांक जारी किया गया उसमें केरल शीर्ष पर है। राजस्थान और कर्नाटक क्रमशः दूसरे और तीसरे स्थान पर है। बिहार तो झारखंड से भी एक पायदान नीचे सत्रहवें स्थान पर है और बीस बड़े राज्यों में आबादी में सबसे बड़ा राज्य उत्तर प्रदेश इस सूची में सबसे नीचे है। कश्मीर उन्नीसवें पायदान पर है फिर भी वहाँ के विद्यार्थी दिल्ली विश्वविद्यालय के साइंस विभाग में दाखिला पाने में सफल हो रहे हैं। बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश के बच्चे उच्च शिक्षण संस्थान में नहीं आ रहे हैं तो इसके मूल कारणों पर विचार करना चाहिए। शैक्षणिक रूप से पिछड़ा हुआ राज्य अपने कुल बजट का कितना प्रतिशत शिक्षा व्यवस्था पर खर्च करता है, वहाँ का इन्फ्रास्ट्रक्चर कैसा हैबेहतर लाइब्रेरी सुविधा है या नहीं, वैज्ञानिक चेतना का विकास हो रहा है या नहीं, स्कूलों में सांस्कृतिक कार्यक्रम और खेल आधारित यूथ फेस्टिवल का आयोजन होता है या नहीं, इन सब बातों की पड़ताल आवश्यक है। उसे धार्मिक उत्सव मनाने की बजाय शिक्षा का उत्सव मनाना चाहिए।  

          अंकों का खेल भी समझना जरूरी है। कई राज्य अपने छात्रों को सौ फीसदी अंक देता है। इस वर्ष जो आवेदन आए हैं, उसमें अधिकांशतः पूर्ण अंक वाले हैं। उन राज्यों के बोर्ड से उत्तर भारत के बोर्ड की तुलना कैसे की जाएक्या अंकों के आधार पर छात्रों की बौद्धिक क्षमता का अंदाजा लगाना उचित हैहाल ही में हमने देखा कि सिविल की परीक्षा में शीर्ष स्थान प्राप्त करने वाला लड़का बिहार का है। वह सिविल की परीक्षा में टॉप कर सकता है, लेकिन दिल्ली विश्वविद्यालय में दाखिला नहीं ले सकता। क्यों नहीं ले सकताक्या उसकी बौद्धिक समझ में कोई कमी हैसबको पता है कि आजकल स्कूलों में अंक कैसे दिए जाते हैं। हिन्दी विषय में पूर्ण अंक लाना करिश्मा है और यह करिश्मा खूब हो रहा है। प्राइवेट स्कूलों के शिक्षक मजबूर होते हैं छात्रों को अधिक अंक देने के लिए। चाहे विद्यार्थी ने कुछ लिखा हो या न लिखा हो। मेरी एक महिला मित्र प्राइवेट स्कूल में पढ़ाती थी। उसने बताया कि उसके एक शिक्षक मित्र ने एक छात्र को कम अंक दे दिया तो अगले दिन उसके पैरेंट्स स्कूल आ गए। शिक्षक को प्रिंसिपल ऑफिस बुलाया गया और पैरेंट्स के सामने ही उसकी डांट लगाई गई। इसलिए अंकों के आधार पर छात्रों की बौद्धिकता का निर्णय उचित नहीं है। अच्छी बात है कि अब सरकारी स्कूलों के छात्रों को भी अच्छे अंक दिए जाने लगे हैं, ताकि उसे भी उच्च शिक्षण संस्थानों में पढ़ने का मौका मिल सके।

          यदि प्राप्तांक ही मूल्यांकन का आधार है तो सबसे पहले दिल्ली विश्वविद्यालय को स्वयं अपने छात्रों के साथ न्याय करना होगा। उसके बाद ही देश के विभिन्न राज्यों से इसकी उम्मीद की जा सकती है। वर्ष 2015-16 में दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में एमफिल/पीएचडी के लिए जो छात्र चयनित किए गए, उसमें अधिकांश छात्र जेएनयू, जामिया, इलाहाबाद, बीएचयू, हरियाणा आदि शिक्षण संस्थानों से थे। दिल्ली विश्वविद्यालय ने अपने ही छात्रों को संस्थान से बाहर कर दिया था। इसका कारण था- मेरिट के आधार पर छात्रों का चयन। दिल्ली विश्वविद्यालय खुद अपने छात्रों को कम अंक देता रहा है। 60-65% अंक लाने वाला विश्वविद्यालय टॉप कर जाता था। हमारे बैच से (2014) जिस लड़के ने एमए की परीक्षा में विश्वविद्यालय टॉप कियाउसका 64-65% अंक था। विद्यार्थी बड़ी मुश्किल से प्रथम श्रेणी ला पाते थे। जबकि दूसरे राज्यों के शिक्षण संस्थानों से आए छात्रों के 80-90% प्राप्तांक थे। उन सबका दाखिला हुआ और दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र बाहर हो गए। हमने इसके खिलाफ प्रोटेस्ट किया। आंदोलन का प्रभाव यह हुआ कि अगले साल से दाखिला प्रक्रिया के लिए मेरिट का आधार समाप्त हो गया और सबके लिए कॉमन प्रवेश परीक्षा की शुरुआत हुई। हर राज्य के छात्रों को इसका लाभ मिला। अब जो प्रवेश परीक्षा में अच्छा प्रदर्शन करता है उसका दाखिला होता है।

          अंकों के आधार पर विद्यार्थियों की बौद्धिक क्षमता का पता लगाना मुश्किल है। लेकिन जब इसी आधार पर ज्ञान का मूल्यांकन करना है तो बाकी राज्यों को भी इस ओर ध्यान देना चाहिए। दक्षिण भारत का शिक्षा स्तर सबसे ऊँचा है। इसलिए वहाँ के छात्र दिल्ली विश्वविद्यालय में ज्यादा आते हैं। क्या बाकी प्रदेशों की सरकार को यह पता नहीं हैदूसरे राज्यों के विद्यार्थी भी उच्च शिक्षण संस्थानों में आए, इसके लिए वहाँ के परीक्षा बोर्ड को केरल परीक्षा बोर्ड की तरह उदार बनना पड़ेगा। वरना छात्र और राज्य दोनों का नुकसान ही होगा। अतः समस्या समाधान हेतु प्रवेश परीक्षा (एंट्रैन्स) ही न्यायोचित है। उसमें जो बेहतर प्रदर्शन करेगा, वह चयनित होगा। इससे किसी भी राज्य के प्रति मन में नाकारात्मक भाव नहीं आएगा। प्राइवेट स्कूलों का वर्चस्व भी कमजोर होगा और सरकारी स्कूलों के प्रति लोगों का रुझान बढ़ेगा।

 

                                रमेश ठाकुर

                                          असिस्टेंट प्रोफेसर,

                                                       हिन्दी विभाग, हिन्दू कॉलेज

                                                                        दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली-110007

                                          मो. 8448971626

 

 

 

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