'प्रवेश परीक्षा ही न्यायोचित है'

'प्रवेश परीक्षा ही न्यायोचित है' दिल्ली विश्वविद्यालय नॉर्थ कैंपस के अध्यापक ने विवादास्पद बयान दिया कि ‘ केरल बोर्ड जानबूझकर दिल्ली विश्वविद्यालय में वामपंथी विचारधारा थोपने के लिए अपने छात्रों को सौ प्रतिशत अंक देता है। ’ मुझे बाबा नागार्जुन की एक कविता ‘ सच न बोलना ’ की कुछ पंक्तियाँ स्मरण हो आईं , जिसमें वे कहते हैं- ‘ रोजी रोटी हक की बातें जो भी मुंह पर लाएगा , कोई भी हो , निश्चय ही वह कम्युनिस्ट कहलाएगा ’ । बातें तो पुरानी हैं , पर नई लगती हैं। क्या अपने अधिकारों की बात करना कम्युनिस्ट होना है ? व्यवस्था से सवाल करना , रोजी-रोटी के लिए संघर्ष करना कम्युनिस्ट होना है ? सवाल नहीं होगा तो संवाद कैसे होगा ? संवाद नहीं होगा तो लोकतंत्र कैसे बचेगा ? भारत एक लोकतांत्रिक देश है। प्रत्येक मनुष्य तथा सभी धर्मानुयायियों को अपनी बात कहने-सुनने का हक भारत का संविधान उसे देता है। क्या वर्तमान सामाजिक और राजनैतिक व्यवस्था आम नागरिकों को यह छूट देने के पक्ष में नहीं है ? ...