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'मीरा का काव्य स्त्री विमर्श का मंगलाचरण है'- प्रो. गोपेश्वर सिंह
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· मीरा ने लिखा है- लोक लाज कुल कानि जगत की , दइ बहाय जस पानी. अपने घर का पर्दा कर ले , मैं अबला बौरानी.. · मैनेजर पाण्डेय लिखते हैं- “प्रेम ही मीरा के सामाजिक संघर्ष का साधन है और साध्य भी.” · कबीर ने कहा था कि ‘प्रेम का घर खाला का घर नहीं है ’. लेकिन मीरा की प्रेम साधना कबीर के प्रेम से अधिक कठिन है. वे कहती हैं- ‘जे तूँ लगन लगाई चाहै, सीस को आसन कीजै ’ . · मैनेजर पाण्डेय लिखते हैं- “मीरा के प्रेम में आत्मसमर्पण और आत्मविश्वास का अनुपम मेल है. उनका आत्मसमर्पण आत्मविसर्जन नहीं है. उस प्रेम में गोविन्द के सामने आत्मसमर्पण है तो सामंती शक्तियों के विरोध की दृढ़ता भी है.” · मैनेजर पाण्डेय लिखते हैं- “मीरा सामंती सत्ता की तुच्छता सामने लाकर उसके आतंक , भय तथा प्रलोभन से मुक्ति की प्रेरणा देती है और अपने प्रेम की श्रेष्ठता सिद्ध करती है.” · मैनेजर पाण्डेय लिखते हैं- “मीरा का विद...
NTA द्वारा जारी नए सिलेबस को ऐसे पढ़ें
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आदिकाल: · नामकरण की समस्या · काल विभाजन की समस्या · साहित्येतिहास लेखन की परंपरा · हिंदी के पहले कवि · धार्मिक साहित्य (सिद्ध , नाथ और जैन साहित्य) · रास अथवा रासो साहित्य (रासो शब्द की व्युत्पत्ति , वीर काव्य , श्रृंगार काव्य और उपदेश मूलक काव्य) · लौकिक साहित्य (अमीर खुसरो, विद्यापति और फुटकल रचनाएँ) भक्तिकाल: · मध्यकालीन दर्शन (अद्वैतवाद , द्वैतवाद , द्वैताद्वैतवाद, विशिष्टाद्वैतवाद, शुद्धाद्वैतवाद और औचिन्त्य भेदाभेदवाद) · मध्यकालीन विभिन्न संप्रदाय ( श्री संप्रदाय , ब्रह्म संप्रदाय , रूद्र संप्रदाय , सनकादी संप्रदाय , विश्नोई संप्रदाय , उदासी संप्रदाय , रामवत संप्रदाय , हरिदासी संप्रदाय , गौडीय संप्रदाय , स्मार्त संप्रदाय , रसिक संप्रदाय , टट्टी संप्रदाय , स्वसुखी संप...