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सिस्टम मरा हुआ जानवर है

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सवाल सिर्फ आने-जाने, रुकने-ठहरने, घूमने-फिरने और खाने-पीने में होने वाले व्यय का ही नहीं है। सिर्फ यही मसला हो तो बर्दाश्त भी किया जा सकता है।  परीक्षा देने में जितना खर्च नहीं होता है, उससे कई गुना ज्यादा पैसा परीक्षा की तैयारी करने में खर्च होता है। अपने आसपास पता कीजिए कि जिन्होंने HPSC Assistant Professor की तैयारी करवाई है, की है, उन्होंने कितनी फीस ली है, दी है।  मनमाने तरीके से लोगों ने प्रतिभागियों से इसकी फीस वसूली है। मिनिमम 30 हजार रुपए खर्च हुए होंगे। मैंने ही 10-15 हजार में इसकी तैयारी करवाई थी। यह सबसे कम फीस थी।  लेकिन बच्चों की मेहनत, खर्च पर तब पानी फिर जाता है जब उसके साथ परीक्षा में फ्रॉड होता है। सिलेबस कुछ और हो और सवाल कुछ और पूछा जाता है। सिलेबस से सवाल भी पूछा जाता है तो बिल्कुल स्तरहीन सवाल होता है। पेपर देखकर ही लग जाता है कि पेपर बनाने वाले के मन में चोर बैठा है।  हमारे प्रोफेसर्स बताते रहे हैं कि आयोग का पेपर देना चाहिए। वहाँ पढ़ने-लिखने वाले विद्यार्थियों के लिए सफलता की पूरी संभावना रहती है। क्योंकि आयोग की परीक्षा अच्छी और नि...